Saturday, June 20, 2009

इन दिनों

इन दिनों
कहने को दोस्तों के मेले हैं,
पर इन दिनों वाकई हम अकेले हैं.
क्या बताएं क्यों प्यार होता नहीं हमसे
ज़िन्दगी में और भी तो झमेले हैं
तेरे हर दांव की है मुझको खबर,
खेल ये मैंने भी बहुत खेले हैं.
न जाने किस बात पर घंटों रोये
वैसे तो हँसते हुए ज़ख्म झेले हैं
तू क्यों फिक्र करता है मेरे ग़म की,
दुःख दर्द तो बरसों से मेरे चेले हैं

5 comments:

Vaibhav said...

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

Thousif Raza said...

true true true 1oo percent true yaar


good frenz are just seeming like a mirage

and why arent you at my blog, i want you there pronto ok ;)

take care and keep writing.......

swathi's said...

enti nuvve raasava leka copy paste aa?

chaitanya said...

@ thousif : thanx for the comment :)

chaitanya said...

@ swats : nope i mentioned in the previous post,its written by my friend vaibhav,whose an awesome poet :)